प्राकृतिक आपदा क्या है प्राकृतिक आपदा के प्रकार एवं बचाव (आपदा प्रबन्धन)
आपदा क्या है ?
प्राकृतिक आपदा पर्यावरण में अचानक होने वाला विशाल परिवर्तन है जिसकी जानकारी पहले से नहीं होती है और जिसका मानव तथा मानवीय क्रियाओं पर प्रतिकूल एवं हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसमें जन-धन की अपार क्षति होती है। ज्वालामुखी उद्गार, भूकम्प, बाढ़, सूखा, हिमपात, ओला वृष्टि, भयंकर तूफान, विभिन्न प्रकार की महामारी तथा मनुष्यों, पशुओं और पौधों की बीमारियों आदि प्राकृतिक संकट के अन्तर्गत आते हैं।

उन समस्त घटनाओं या दुर्घटनाओं को जो या तो प्राकृतिक कारकों या मानव जनित कारकों से घटित होती हैं, चरम घटना (Extreme events) कहते हैं जो कभी-कभी घटित होती हैं। ये प्राकृतिक पारिस्थितिकी तन्त्र के जैविक एवं अजैविक संघटकों से सहनशक्ति से बहुत अधिक हो जाती हैं तथा घटना क्षेत्र में लापरवाही स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ये चरम घटनाएँ विश्व स्तर पर विभिन्न समाचार माध्यमों, रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्रों की प्रमुख सुर्खियाँ बन जाती हैं।
आपदा की परिभाषा
आपदा (Disaster) का अर्थ है, ‘विपत्ति’ अचानक होने वाली ऐसी विध्वंसकारी घटना जिससे व्यापक स्तर पर जैविक एवं भौतिक क्षति होती है, आपदा कहते हैं। प्रायः प्रकोप एवं आपदा शब्दों का प्रयोग समानार्थी रूप में किया जाता है, किन्तु इनकी परिणति में अन्तर है। आपदा के साथ जन-धन की व्यापक क्षति जुड़ी होती है।
आपदा के प्रकार
आपदा को सामान्यतः दो वर्गों में बाँटते हैं- (i) प्राकृतिक आपदा तथा (ii) मानवजनित आपदा।
(i) प्राकृतिक आपदा
(A). भूतलीय आपदा-
- ज्वालामुखी
- भूकम्प
- भूस्खलन
(B). वायुमंडलीय आपदा-
- चक्रवात
- आंधी तूफ़ान
चक्रवात-
अतिवृष्ट और बाढ़, अनावृष्टि, सूखा, लू, शक्तिहर,शीतलहर, हिमावरण, हिमद्रवण एवं समुद्रतल में परिवर्तन।
(ii) मानवजनित (मानवीय) आपदा
(A). भौतिक आपदा-
- भूस्खलन
- मृदा अपरदन भूकम्प
- भूमण्डलीय तापवृद्धि
- ओजोन क्षरण
(B). जैविक आपदा-
- जनसंख्या वृद्धि
- जीव-जन्तु का लोप
- सांस्कृतिक अपक्षरण
- युद्ध
इन आपदाओं से होने वाली अप्रत्याशित दबाव एवं हानि कभी-कभी इतनी भयंकर होती है कि सारे वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी विकास के बावजूद मनुष्य इनके सामने बौना बन जाता है। इन प्राकृतिक आपदाओं का सीधा सम्बन्ध पर्यावरण से है।
उल्लेखनीय है कि ये प्रकोप अनादिकाल से सतत चले आ रहे हैं, किन्तु इनकी बारम्बारता, प्रभाव, विस्तार और सघनता में पहले की अपेक्षा अब अधिक परिवर्तन महसूस किया जा रहा है तथा मानव सहित दूसरे जीवों पर भी इसका प्रभाव अधिक हानिकारक है।
मानव संख्या और समृद्धि में वृद्धि के कारण प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव भयावह रूप प्रस्तुत करने लगे हैं, बाढ़ की विभीषिका पहले से अधिक लोगों के अधिवासों को प्रभावित करता है, भूकम्प का घाव अधिक गहरा हो जाता है क्योंकि कभी-कभी समूचा शहर श्मशान बन जाता है।
सर्वविदित है कि प्राकृतिक आपदाओं का तीसरी दुनिया के देशों में बाहुल्य रहता है। वस्तुतः अधिकांश विकासशील देश उष्ण एवं उपोष्ण प्रदेशों (Tropical Regions) में स्थित हैं जहाँ वायुमण्डलीय प्रक्रमों द्वारा आये दिन कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का आविर्भाव होता रहता है- जैसे बाढ़, सूखा, वनाग्नि आदि नगरीकरण में तेजी से वृद्धि, औद्योगिक विस्तार, कृषि में विकास, जनसंख्या मैं वृद्धि तथा सामाजिक विकास के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति तथा मात्रा में दिनोदिन वृद्धि होती जा रही है।
इन आपदाओं के कारण सम्पूर्ण विश्व, किन्तु विकासशील देशों में विशेषतः इतनी अधिक आर्थिक क्षति होती है कि विकास परियोजनाओं के अनुकूल परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो पाते हैं, बल्कि वे मटियामेट हो जाते हैं क्योंकि विकास परियोजनाओं के लिए निर्धारित धनराशि को प्रकोपों से उत्पन्न क्षति की पूर्ति के लिए लगाना पड़ता है।
प्राकृतिक घटनाएँ जिनके आगमन की पूर्व सूचना प्राप्त होना असम्भव होता है, अत्यन्त विनाशकारी होती हैं-ज्वालामुखी, भूकम्प, भूस्खलन आदि ऐसी घटनाएँ इसका प्रमुख उदाहरण हैं। इनके आगमन के पूर्व मनुष्यों को सूचना प्राप्त नहीं होती है तथा वह असावधान रहता है फलस्वरूप अत्यधिक जन-धन की हानि होती है। कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जिनके आगमन के 24 घण्टे पूर्व में ही सूचना प्राप्त हो जाती है, लोग सावधान हो जाते हैं, फलतः नुकसान कम होता है।
इसके विपरीत कुछ घटनाओं का अनुमान वर्षों पूर्व होने लगता है। सम्बन्धित वैज्ञानिक अथवा विषय विशेषज्ञ अपना अनुमान व्यक्त कर देते हैं। जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत का क्षीण होना, ग्लोबल वार्मिंग आदि घटनाओं की सूचना वैज्ञानिक बहुत पहले से ही दे रहे हैं। वायुमण्डलीय तूफान- टारनैडो, हरीकेन, आंधी-तूफान आदि की सूचना मौसम विज्ञान कार्यालय में इनके आगमन से पूर्व प्राप्त हो जाती है। अतः वैज्ञानिक अनुसंधान किये जा रहे हैं, ताकि जिन घटनाओं को रोका नहीं जा सकता, उनसे सावधान होकर प्रत्यक्ष प्रभाव को कम से कमतर अवश्य किया जा सकता है।
मानव प्राकृतिक आपदाओं की मार प्राचीनकाल से ही झेलता आया है। वह इन्हें रोक तो नहीं सकता, किन्तु आपदा प्रबन्धन द्वारा इनसे होनेवाली जन-धन की हानि को कम कर सकता है। रेडक्रॉस तथा रेड क्रेसेण्ट सोसायटी विश्व की सबसे बड़ी आपात स्वयंसेवी संस्थाएँ हैं, जो विश्व के किसी भी भाग में आपदा आने पर बचाव व सहायता के लिए तैयार रहती हैं।
आपदा की रोकथाम तथा प्रभाव कम करने के प्रयास, आपदा से निपटने की तैयारी, बचाव, राहत व पुनर्वास के सम्मिलित एवं नियोजित उपायों को आपदा प्रबन्धन कहते हैं।Read more..