अनुबन्ध अधिनियम का व्यापारिक सन्नियम में विशिष्ट स्थान है क्योंकि इसका सम्बन्ध प्रत्येक व्यक्ति से है चाहे वह इंजीनियर हो या चिकित्सक, प्रशासनिक अधिकारी हो या शिक्षक, व्यापारी हो या वेतनभोगी कर्मचारी, कलाकार हो या फिर सामान्य नागरिक। वास्तव में हम सभी व्यक्ति किसी न किसी क्रम में जाने-अनजाने अपने सामान्य जीवन में प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के अनुबन्ध करते हैं जिनसे कुछ वैधानिक दायित्व उत्पन्न होते हैं।
सम्बन्धित पक्षों को इन दायित्वों को पूरा करना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिये जब हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते है, टैक्सी या बस किराये पर लेते है, मशीन या अन्य सामान खराब हो जाने पर गरम्मत के लिए देते हैं, कपड़ो को सिलाई के लिए दर्जी को देते हैं, पड़ौसी या मित्रों को प्रयोग हेतु वस्तुएँ देते या लेते हैं तथा मकान या दुकान किराये पर देते या लेते हैं तो अनुबन्ध ही तो करते है। यदि हम कहें कि ये अनुबन्ध हमारे जीवन का अनिवार्य अंग है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रसिद्ध विधिशास्त्री टी. आर. देसाई ने ठीक ही कहा है, “अनुबन्धों का विधान प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है, क्योकि हमारे में से प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन अनुबन्ध ही करता रहता है।”
व्यापारी वर्ग के लिए तो अनुबन्ध अधिनियम का अत्यधिक महत्व है क्योंकि व्यापार का कार्य तो अनुबन्धों पर ही आधारित है। व्यावसायिक जगत के सफल संचालन एवं विकास हेतु Read More…