भारतीय शिक्षा आयोग (हण्टर कमीशन), 1882 | [Indian Education Commission, 1882]
*** भारतीय शिक्षा आयोग ***
1857 में भारतीयों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी (ब्रिटिश) शासन के विरुद्ध आन्दोलन शुरु किया। इस आन्दोलन को 1857 की क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन को दबाने के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत के शासन की बागडोर कम्पनी के स्थान पर स्वयं सम्भालने का निर्णय लिया। 1 नवम्बर 1858 को ब्रिटेन की तत्कालीन साम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया ने इस आशय का एक आदेश जारी किया और तभी से इस देश में ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन लागू हुआ।
लार्ड कैनिंग (Lord Canning) को बिटिश भारत का पहला गवर्नर जनरल एवं वायसराय (Governor General and Viceroy) नियुक्त किया गया। इसके बाद 1861 में ब्रिटेन सरकार ने, भारतीय वैधानिक अधिनियम (Indian Legislative Act) पास किया जिसके अनुसार भारत के प्रत्येक प्रान्त में विधान परिषदों (Legistative Councils) का गठन किया गया जिनमें भारतीयों को भी प्रतिनिधित्व दिया गया। धीरे-धीरे भारत में ब्रिटिश शासन सुदृढ़ हो गया।
भारत में ब्रिटिश शासन को सुदृढ़ करने के बाद सरकार का ध्यान भारतीय शिक्षा पर गया। इधर भारत में भारतीय और उधर इंग्लैण्ड में ईसाई मिशनरी भारतीय शिक्षा में परिवर्तन की माँग कर रहे थे। इस हेतु ईसाई मिशनरियों ने इंग्लैण्ड में ‘जनरल काउन्सिल ऑफ ऐजूकेशन इन इण्डिया’ संस्था का गठन भी किया था और उसके माध्यम से ये ब्रिटिश सरकार पर भारत की शिक्षा नीति में परिवर्तन करने के लिए बराबर दबाव डाल रहे थे।
बात दरअसल यह थी कि वुड डिस्पेच में घोषित शिक्षा नीति 1854 के तहत भारतीय शिक्षा में ईसाई मिशनरियों का प्रभुत्व समाप्त हो गया था। 1880 में लार्ड रिपन (Lord Rippon) भारत के नए गवर्नर जनरल और वायसराय नियुक्त हुए। अनुकूल अवसर जानकर ‘जनरल काउन्सिल ऑफ एजूकेशन इन इण्डिया’ के एक प्रतिनिधि मण्डल ने लॉर्ड रिपन से भेंट की और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराया और उनसे भारतीय शिक्षा नीति में परिवर्तन करने Read more….