योग का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, उद्देश्य, महत्व, एवं प्रकार (Meaning of Yoga)
योग का अर्थ (Meaning of Yoga)
भारतीय आध्यात्मिक साधना की परम्परा के अनुसार ‘योग’ शब्द एक और साध्य, मंजिल, तक्ष्य आदि सन्दर्भों का वाचक है वहीं दूसरी ओर यह साधन, मार्ग, उपाय आदि सन्दभों का भी वाचक है। भारतीय दर्शन का अन्तिम लक्ष्य मुक्ति की प्राप्ति है और उसके लिए योग दर्शन, बौद्ध दर्शन तथा जैन दर्शन में क्रमशः कैवल्य, निर्वाण तथा मोक्ष शब्दों का प्रयोग हुआ है।
यह तात्पर्य की दृष्टि से समान ही है पर उसकी व्याख्या व अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से हुई है। साध्य की साम्यता होते हुए भी प्रत्येक दर्शन अपने भीतर कुछ विशिष्टताओं को संजोए हुए है। साध्य को समझाने व प्राप्त करने के लिए अपने-अपने दृष्टिकोण से साधनों का उपयोग हुआ है। इसलिए उसी के अनुरूप योग की परम्पराओं/शाखाओं का विकास हो गया जैसे- पतंजलि योग, बौद्ध योग, जैन योग आदि।
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी अनेक विधाएँ हों इसलिए योग के भी अनेक प्रकार हो जाते हैं; जैसे- ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्मयोग, राजयोग, लय योग आदि। पाश्चात्य देशों में भी अस्तित्व, स्व याय मूल तथ्य को समझने के लिए गहनता से विचार किया जा रहा है। ये शब्द ‘फ्रायड’ के ‘इंगो’ से परे सामान्य चेतना स्तर के आगे के धरातल की ओर इंगित करते हैं। भारतीय योग विधा में ‘स्व’ का तात्पर्य आत्मा या परम सत्ता लिया जाता है।
आत्म-साक्षात्कार, स्व-बोध या विशुद्ध चेतना का अनुभव, योग अर्थात् साधना की विभिन्न प्रविधियों द्वारा किया जाता है। जो विशुद्ध चेतना है, आत्मा है वही, आत्मा है वही परमात्मा है, जो पिण्ड में है। वही ब्रह्माण्ड में है जो एक में है, सर्वत्र है। इस धरातल पर एकत्व (Oneness) प्राप्ति ही मजिल है, यही योग Read More…