राष्ट्र कल्याण व समाज कल्याण के साधन के रूप में शिक्षा
शिक्षा ने जब भी किसी राष्ट के विकास की जिम्मेदारी ली है, तो उसने सर्वप्रथम राष्ट्र के मान-सम्मान की प्रगति के लिए कार्य किये हैं। राष्ट्र स्वयं में कोई गतिमान वस्तु नहीं है। वह अपनी गति के लिए समाज की गतिशीलता पर आश्रित है। समाज के द्वारा ही राष्ट्र का निर्माण होता है। बिना समाज के राष्ट्र का कोई अतिस्तत्व ही नहीं है। अतः किसी देश के मानव समाज को राष्ट्र ही कहा जाता है। यदि समाज शिक्षित होकर उन्नति करता है तो राष्ट्र स्वतः ही प्रगति के पथ पर अग्रसर होने लगता है।
राष्ट्र कल्याण व समाज कल्याण के रूप में शिक्षा निम्नलिखित कार्य करती है- Read more…