समायोजन, भग्नाशा, तनाव एवं संघर्ष | Samaayojan, Bhagnaasha, Tanaav Evam Sangharsh

Education
3 min readAug 4, 2023

--

समायोजन का अर्थ

एक छात्र अर्द्धवार्षिक परीक्षा में अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना अपना लक्ष्य बनाता है पर दूसरे छात्रों की प्रतियोगिता और अपनी कम योग्यता के कारण वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल होता है। इससे वह निराशा और असन्तोष, मानसिक तनाव और संवेगात्मक संघर्ष का अनुभव करता है। ऐसी स्थिति में वह अपने मौलिक लक्ष्य को त्यागकर अर्थात् अर्द्धवार्षिक परीक्षा में अपनी असफलता के प्रति ध्यान न देकर वार्षिक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना अपना लक्ष्य बनाता है

अतः अब यदि वह अपने इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, तो वह अपनी परिस्थिति या वातावरण से ‘समायोजन’ (Adjustment) कर लेता है। पर यदि उसे सफलता नहीं मिलती है, तो उसमें ‘असमायोजन’ (Maladjustment) उत्पन्न हो जाता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिए परिस्थितियों को अनुकूल बनाना या परिस्थितियों के अनुकूल हो जाना ही समायोजन कहलाता है। यह समायोजन, व्यक्ति अपनी क्षमता, योग्यता के अनुसार करता है।

समायोजन और असमायोजन की परिभाषा

हम ‘समायोजन’ और ‘असमायोजन’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं-

1. बोरिंग, लँगफेल्ड व वेल्ड के अनुसार- “समायोजन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्राणी अपनी आवश्यकताओं और इन आवश्यकताओं की पूर्ति को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में सन्तुलन रखता है।”

2. गेट्स व अन्य के अनुसार- “समायोजन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने और अपने वातावरण के बीच सन्तुलित सम्बन्ध रखने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है।”

3. गेट्स व अन्य के अनुसार- ‘’असमायोजन, व्यक्ति और उसके वातावरण में असन्तुलन का उल्लेख करता है।”

अतः इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि समायोजन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। साथ ही व्यक्ति, परिस्थिति तथा पर्यावरण के मध्य अपने को समायोजित करने के लिए अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है। अतः समायोजन को सन्तुलित दशा कहा गया है।

समायोजन के लक्षण

समायोजन करने वाले व्यक्ति में ये लक्षण पाये जाते हैं-

1. परिस्थिति का ज्ञान, नियन्त्रण तथा अनुकूल आचरण ।

2. सन्तुलन ।

3. पर्यावरण तथा परिस्थिति से लाभ उठाना।

4. समाज के अन्य व्यक्तियों का ध्यान ।

5. सन्तुष्टि एवं सुख।

6. सामाजिकता, आदर्श चरित्र संवेगात्मक रूप से अस्थिर सन्तुलित तथा दायित्वपूर्ण

7. साहसी एवं समस्या का समाधान युक्त । इसीलिये गेट्स ने कहा है -समायोजित व्यक्ति वह है जिसकी आवश्यकतायें एवं तृप्ति सामाजिक दृष्टिकोण तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की स्वीकृति के साथ संगठित हों।

भग्नाशा का अर्थ

व्यक्ति की अनेक इच्छायें और आवश्यकतायें होती हैं। वह उनको सन्तुष्ट करने का प्रयास करता है। पर यह आवश्यक नहीं है कि वह ऐसा करने में सफल ही हो उसके मार्ग में बाधायें आ सकती हैं। वे बाधायें उसकी आशाओं को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से भंग कर सकती है। ऐसी दशा में वह ‘भग्नाशा’ का अनुभव करता है। जैसे- हम प्रातः काल चार बजे की गाड़ी से दिल्ली जाना चाहते हैं। हम समय से पहले उठने के लिए अलार्म घड़ी में चाभी लगा देते हैं, पर वह बजती नहीं है। अतः हम जाग नहीं पाते हैं और दिल्ली जाने से रह जाते हैं या मान लीजिए कि हम समय पर स्टेशन पहुँच जाते हैं पर भीड़ के कारण हमें टिकट नहीं मिल पाती है या हम गाड़ी में नहीं बैठ पाते है और वह चली जाती है। दोनों दशाओं में दिल्ली जाने की हमारी इच्छा में अवरोध उत्पन्न होता है। वह पूर्ण नहीं होती है, जिसके फलस्वरूप हम भग्नाशा का शिकार बनते हैं।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि ‘भग्नाशा’, तनाव और असमायोजन की वह दशा है जो हमारी किसी इच्छा या आवश्यकता के मार्ग में बाधा आने से उत्पन्न होती है।Read more….

--

--

Education
Education

Written by Education

यह एक educational blog है, जिसमे शिक्षा से सम्बंधित अच्छी से अच्छी सामग्री निःशुल्क उपलब्ध है | जो हमारे प्रतियोगी विद्यार्थी है उनके लिए ये लेख सहयोगी बनेगें |

No responses yet