जानिए भक्ति आंदोलन का अर्थ और सन्त कबीर की महत्वपूर्ण शिक्षाएं।
उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन
भक्ति आन्दोलन सुदूर दक्षिण में शंकराचार्य के निर्गुण अद्वैतवाद से आरम्भ हुआ था लेकिन आल्वार भक्तों ने सगुण की उपासना का भक्तिपूर्ण मार्ग स्थापित किया था। उनके भक्ति मार्ग को दार्शनिक आधार प्रदान करने कार्य रामानुजाचार्य, माधवाचार्य तथा निम्बार्कचार्य ने किया था। यह भक्ति आन्दोलन एक धार्मिक आन्दोलन था और निर्गुण के स्थान पर सगुण तथा ज्ञान के स्थान पर भक्ति को मोक्ष पाने का सरलतम मार्ग मानता था। उत्तर भारत में इस्लाम धर्म के आने से हिन्दू समाज के समक्ष धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक संकट उत्पन्न हो गया था।
अतः उत्तर भारत का भक्ति आन्दोलन अपने स्वरूप तथा उद्देश्य में दक्षिण भारत के भक्ति आन्दोलन से भिन्न था। डॉ. ग्रियर्सन लिखते हैं, “हम अपने को ऐसे धार्मिक आन्दोलन के सामने पाते हैं जो उन सब आन्दोलनों से कहीं व्यापक और विशाल है जिन्हें भारतवर्ष ने कभी देखा है। इस युग में धर्म ज्ञान का विषय नहीं वरन् भावावेश का विषय हो गया था। Read more…