बालक और शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य | Baalak Aur Shikshak Ka Maanasik Svaasthy

Education
4 min readAug 3, 2023

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बालक और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता

बालक और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य का शिक्षा में अत्यधिक ध्यान रखा जाता है। बालक,भविष्य की नींव है, इसलिये उसका मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहना आवश्यक है। शिक्षक, भविष्य का निर्माता है, इसलिये,अगर निर्माता मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होगा तो भावी समाज विकृत हो जायेगा। इसलिये बालक तथा शिक्षक,दोनों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना अति आवश्यक है।

फ्रेंडसन के शब्दों में- “मानसिक स्वास्थ्य और अधिगम से सफलता का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है।”

इन शब्दों में यह संकेत निहित है कि बालक और शिक्षक दोनों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होना अनिवार्य है। इसके अभाव में न तो बालक सफलतापूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सकता है और न शिक्षक सफलतापूर्वक शिक्षण का कार्य कर सकता है। उनके मानसिक स्वास्थ्य पर किन कारकों का हानिकारक प्रभाव पड़ता है और उसमें उन्नति करने के लिए किन उपायों का प्रयोग किया जा सकता है हम इन पर निम्नांकित पंक्तियों में विचार कर रहे हैं-

लेडेल के अनुसार- “मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है वास्तविकता से पर्याप्त सामंजस्य करने की योग्यता।”

कुप्पूस्वामी के अनुसार- “मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है- दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्त्वाकांक्षाओं, आदशों में संतुलन करने की योग्यता। इसका अर्थ है जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने और उनको स्वीकार करने की योग्यता ।”

बालक के मानसिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले कारक

ऐसे अनेक कारक या कारण है, जो बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं और उसकी समायोजन की शक्ति को क्षीण कर देते हैं। ये कारण निम्नलिखित है-

1. वंशानुक्रम का प्रभाव

कुप्पूस्वामी के अनुसार : बालक दोषपूर्ण वंशानुक्रम से मानसिक निर्बलता, एक विशेष प्रकार का मानसिक अस्वास्थ्य और कुछ मानसिक एवं स्नायु सम्बन्धी रोग प्राप्त करता है। फलस्वरूप वह समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करता है।

2. शारीरिक स्वास्थ्य का प्रभाव

शारीरिक स्वास्थ्य को मानसिक स्वास्थ्य का आधार माना जाता है। यदि बालक का शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं है, तो उसके मानसिक स्वास्थ्य का अच्छा न होना स्वाभाविक है।

कुप्पूस्वामी के अनुसार- “स्वस्थ व्यक्तियों की अपेक्षा रोगी व्यक्ति नई परिस्थितियों से सामंजस्य करने में अधिक कठिनाई का अनुभव करते हैं।”

3. शारीरिक दोषों का प्रभाव

शारीरिक दोष असमायोजन के लिए उत्तरदायी होते हैं।

कुप्पूस्वामी का मत है-”गम्भीर शारीरिक दोष बालक में हीनता की भावनायें उत्पन्न करके समायोजन की समस्याएँ उपस्थित कर सकते हैं।”

4. समाज का प्रभाव

समाज का अभिन्न अंग होने के कारण बालक पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यदि समाज का संगठन दोषपूर्ण है, तो बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ना आवश्यक है। समाज के आन्तरिक झगडे, धार्मिक और जातीय संघर्ष, विभिन्न समूहों के राजनीतिक दाँव पेंच, धनी वर्गों के संकीर्ण स्वार्थ, निर्धन वर्गों की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की माँग, ऊँच-नीच और अस्पृश्यता की भावनायें, व्यक्तिगत सुरक्षा और स्वतन्त्रता का अभाव- ये सभी बातें बालक में मानसिक तनाव उत्पन्न कर देती हैं। परिणामतः उसके मानसिक स्वास्थ्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है।

5. परिवार का प्रभाव

परिवार, बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुमुखी प्रभाव डालता है-

(i) परिवार का विघटन- आधुनिक समय में औद्योगीकरण के कारण परिवार का अति तीव्र गति से विघटन हो रहा है। बालक, परिवार के सदस्यों में अलगाव की प्रबल भावना देखता है। फलस्वरूप, उसमें भी अलगाव की भावना उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह असमायोजन की ओर अग्रसर होता है।

(ii) परिवार का अनुशासन- यदि परिवार में बालक पर कठोर अनुशासन रखा जाता है और उसे छोटी-छोटी बातों पर डॉटा डपटा जाता है, तो उसमें आत्महीनता की भावना घर कर लेती है। ऐसी स्थिति में उसका मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

(iii) परिवार की निर्धनता- प्लांट (Plant) ने अपनी पुस्तक “Personality & the Cultural Pattern” में लिखा है, कि परिवार की निर्धनता के कारण बालक का व्यक्तित्व उम्र और कठोर हो जाता है उसमें हीनता और असुरक्षा की भावना विकसित हो जाती है एवं उसमें आत्मविश्वास का स्थायी अभाव हो जाता है। ये सब बातें उसके मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर देती हैं।

(iv) पारिवारिक संघर्ष- परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बालक के माता-पिता के पारस्परिक संघर्ष उसके मानसिक स्वास्थ्य पर इतना दूषित प्रभाव डालते हैं कि वह समायोजन करने में असमर्थ होता है।

कुप्पूस्वामी के शब्दों में- “जिन माता-पिता में निरन्तर संघर्ष होता रहता है, वे समायोजन की समस्याओं वाले बालकों में अत्यधिक प्रतिशत का कारण होते हैं।”

(v) माता-पिता का व्यवहार- कुछ माता-पिता अपने बच्चों को अत्यधिक लाड़-प्यार से पालते हैं. कुछ उनसे किसी कारणवश बहुत समय अलग रहते हैं, कुछ उनको पर्याप्त प्रेम और सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं, कुछ उनको अयोग्य और निकम्मा समझते हैं, कुछ उनको अपने ऊपर आवश्यकता से अधिक निर्भर बना लेते हैं, कुछ उनके प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार करते हैं, कुछ उनसे अपने आदर्शों पर न पहुँच पाने के कारण घृणा करने लगते है।Read more…

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