बौद्ध कालीन शिक्षा ||बौद्ध कालीन शिक्षा क्या है || (500B.C.–1200 A.D.)
लगभग ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी से जन-जीवन की परवर्तित आवश्यकताओं की पूर्ति न कर सकने के कारण वैदिक कालीन अथवा ब्राह्मणीय शिक्षा में विश्रृंखलता के चिन्ह दृष्टिगोचर होने लगे थे। भारत के सौभाग्य से उसके एक शताब्दी पूर्व ही महात्मा गौतम बुद्ध ने इस देश की भूमि पर अवतरित होकर शिक्षा को समयानुकूल बनाने के विचार से उसके कलेवर में परिवर्तन करके बौद्ध शिक्षा को जन्म दिया। इस शिक्षा के विषय में डॉ० एफ० ई० केई ने लिखा है- “बौद्ध-शिक्षा 1,500 वर्ष से अधिक प्रचलित रही और उसने ऐसी शिक्षा पद्धति का विकास किया जो ब्राह्मणीय शिक्षा-पद्धति की प्रतिद्वन्द्वी थी, पर अनेक बातों में उसके सदृश थी।”
बौद्ध कालीन शिक्षा की व्यवस्था
बौद्ध धर्म का विकास मठों में हुआ था। ये मठ न केवल धर्म के वरन् शिक्षा के भी केन्द्र थे और शिक्षा देने का कार्य उनमें निवास करने वाले भिक्षुओं द्वारा किया जाता था। इन तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए डॉ० आर० के० मुकर्जी ने लिखा है- बौद्ध मठ, बौद्ध-शिक्षा और ज्ञान के केन्द्र थे। बौद्ध- संसार अपने मठों से पृथक् या स्वतन्त्र रूप में शिक्षा प्राप्त करने का कोई अवसर नहीं देता था। धार्मिक और लौकिक, सब प्रकार की शिक्षा, भिक्षुओं के हाथ में थी । “ प्राचीन काल के समान बौद्ध काल में भी केवल प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा की व्यवस्था थी और शिक्षा के यही दो स्तर थे।
अतः हम इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं जो इस प्रकार है-
1. प्राथमिक शिक्षा
सामान्य परिचय : हमें जातक कथाओं से ज्ञात होता है कि प्राथमिक शिक्षा केवल बौद्ध धर्मावलम्बियों को ही नहीं, वरन् सब जातियों के बालकों को उपलब्ध थी। यह शिक्षा मठों में दी जाती थी और आरम्भ से पूर्णतया धार्मिक थी किन्तु जब कुछ समय के उपरान्त ब्राह्मणों ने प्रतिद्वन्द्वी शिक्षा-संस्थाएँ स्थापित करके उनमें लौकिक शिक्षा देनी आरम्भ कर दी, तब मठों में भी इस शिक्षा की व्यवस्था कर दी गई। पाँचवी शताब्दी में भारत आने वाले चीनी यात्री फाह्यान (Fa- Hien) के लेखों में इस बात का उल्लेख मिलता है।
प्रवेश व अवधि : सातवीं शताब्दी में भारत आने वाले चीनी यात्री, आइसांग (I-Tsing) के अनुसार, प्राथमिक शिक्षा आरम्भ करने की आयु 6 वर्ष की थी। इस शिक्षा की अवधि साधारणतः 6 वर्ष की थी।
पाठ्यक्रम : सातवीं शताब्दी में भारत आने वाले चीनी यात्री हेनसांग (Hiuen-Tsing) प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम का वर्णन इस प्रकार किया है-
बालकों को प्रथम 6 माह में सिद्धिरस्तु (Siddhirastu) नामक बालपोथी पढनी पडती थी। इस पोथी में 12 अध्याय और वर्णमाला के 49 अक्षर थे, जिनको विभिन्न क्रम में रखकर 300 से अधिक श्लोकों की रचना की गई थी। 16 माह के बाद बालकों को अग्रांकित पाँच विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी शब्द-विद्या, तर्क-विद्या, चिकित्सा- विद्या, अध्यात्म-विद्या और शिल्प-स्थान- विद्या (Grammar Logic, Medicine, Metaphysics & Arts and crafts)। इस प्रकार पाठ्यक्रम में धार्मिक और लौकिक दोनों विषयों को स्थान दिया गया था।
शिक्षण विधि : एलबर्ट फिटके (Albert Fyiche) के अनुसार, सामान्य शिक्षण विधि इस प्रकार थी- कि शिक्षक, लकड़ी की तख्ती पर वर्णमाला के अक्षरों को लिखता था और उनका उच्चारण करता था। बालक उसके उच्चारण का अनुकरण करते थे। इस प्रकार, जब कुछ समय के बाद उनको अक्षरों का ज्ञान हो जाता था, तब वे उनको लिखते थे। पाठ्य विषय के शिक्षण का अध्यापक आगे-आगे बोलता था और बालक उसके कथन को उस समय तक दोहराते थे जब तक उनको पाठ्य-विषय कण्ठस्थ नहीं हो जाता था। इस प्रकार, शिक्षण विधि पूर्णतया मौखिक थी।Read more…