भारतीय जनजातियों की समस्याओं तथा समाधान के उपायों का उल्लेख करें।
सम्पर्क के माध्यम
योगेश पटेल ने आदिवासियों के बाहरी सम्पर्क के निम्न 12 माध्यमों की चर्चा की है जो इस प्रकार से हैं-
1. राजकीय कर्मचारी
आदिवासी समाज सदैव किसी न किसी राज्य के अन्तर्गत रहे हैं। राज्य कर्मचारी निरन्तर इनके साथ सम्पर्क करते रहे हैं।
2. ईसाई मिशनरी
अंग्रेजी राज्य में अनेकों ईसाई मिशनरियों ने भोली-भाली आदिवासी जनता को ईसाई बनाने के उद्देश्य से इनके एकान्त जीवन में प्रवेश किया। स्कूल, अस्पताल आदि के माध्यम से वे निरन्तर जनजातियों के दैनिक सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित करने लगे।
3. साधू-संन्यासी
हिन्दू साधू-संन्यासी भी दान-दक्षिणा प्राप्त करने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में जाते रहे हैं। इनके द्वारा जनजातीय समाज में हिन्दू तत्वों का प्रादुर्भाव हुआ है।
4. ठेकेदार
जनजातियों के साथ ठेकेदारों का विशेष सम्पर्क रहा है। जंगल काटने, सड़कें बनवाने और रेलवे लाइन बिछाने का ठेका लेने वाले शहरी लोग सस्ते दामों पर आदिवासियों को मजदूरी पर लगाते रहे हैं। इन ठेकेदारों और इनके साथ नत्थी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों ने इन सीधे-साधे स्त्री-पुरुषों का हर प्रकार से शोषण किया है, जो आज भी काफी मात्रा में हो रहा है।
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5. खान उद्योग
आदिवासी क्षेत्रों में खनिज सम्पत्ति की सम्भावनाओं ने शासकों और उद्योगपतियों को अपनी ओर आकर्षित किया है। सिंहभूमि की कोयला खानों तथा संथाल परगने में टाटानगर के लोहे के कारखानों में अधिकांश मजदूर आदिवासी हैं।
6. व्यापारी
सामान बेचने, अपनी वस्तुओं का प्रचार करने और रुपया-पैसा उधार देने के लिए व्यापारियों का भी आदिवासियों से निन्तर सम्पर्क रहा है।
7. बाहरी क्षेत्रों में प्रवास
रोजगार की तलाश में अनेक आदिवासी दूर-दूर के प्रदेशों में उद्योगों या चाय के बागानों आदि में काम करने के लिए चले जाते हैं। वे बाहरी समाज के बीच में रहकर नवीन सांस्कृतिक तत्वों को अपना लेते हैं, और फिर इनको अपने क्षेत्रों में फैलाने Read More….