माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर कमीशन) 1952–53 | Madhyamik Shiksha Aayog 1952–53

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3 min readJan 29, 2024

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माध्यमिक शिक्षा आयोग

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने सर्वप्रथम 1948 में विश्वविद्यालय आयोग (राधाकृष्णन् कमीशन) का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 1949 में प्रस्तुत की। इस आयोग ने विश्वविद्यालयी शिक्षा में सुधार के लिए अनेक सुझाव दिए जिनमें एक सुझाव यह भी था कि विश्वविद्यालयी शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके पूर्व की माध्यमिक शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाया जाए। उसी समय सन् 1948 में भारत सरकार ने माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा करने और उसका स्तर ऊँचा उठाने के लिए सुझाव देने हेतु ‘ताराचन्द समिति’ (Tarachand Committee) का गठन किया था। इस समिति ने भी अपनी रिपोर्ट 1949 में प्रस्तुत की थी।

इस समिति ने माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध जो सुझाव दिए, उनमें मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे-

  • जूनियर बेसिक 5 वर्ष, सीनियर बेसिक 3 वर्ष और माध्यमिक शिक्षा 4 वर्ष की की जाए।
  • माध्यमिक स्तर पर बहुउद्देशीय स्कूल (Multipurpose Schools) खोले जाएँ जिनमें विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक एवं तकनीकी पाठ्यक्रम चलाए जाएँ।
  • जूनियर बेसिक स्तर पर केवल मातृभाषा की शिक्षा दी जाए, सीनियर बेसिक स्तर पर मातृभाषा के साथ राष्ट्रभाषा हिन्दी की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाए और जब देश में उच्च शिक्षा का माध्यम हिन्दी हो जाए तब माध्यमिक स्तर पर भी राष्ट्रभाषा हिन्दी की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाए।
  • बाह्य परीक्षाओं का आयोजन केवल माध्यमिक शिक्षा की समाप्ति पर हो।
  • विश्वविद्यालयों में प्रवेश माध्यमिक परीक्षा के परिणाम के आधार पर दिया जाए और यदि विश्वविद्यालय चाहें तो वे प्रवेश परीक्षा का आयोजन भी कर सकते हैं।
  • शिक्षकों के वेतनमान और सेवाशर्तें ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ के प्रस्तावों के अनुकूल हों।

केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने इन सुझावों का अध्ययन किया। उसकी सम्मति में ये सुझाव अधूरे और अस्पष्ट थे। अतः उसने 1951 में केन्द्रीय सरकार के सामने माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा। सरकार ने 23 सितम्बर, 1952 को मद्रास विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ का गठन किया। इस आयोग को अध्यक्ष के नाम पर मुदालियर आयोग (Mudaliar Commission) भी कहते हैं। इस आयोग के अन्य सदस्यों में डॉ० के० एल० श्रीमाली, श्री के० जी० सैयदेन, श्रीमती हंसा मेहता, श्री जॉन क्राइस्ट और श्री कैनथ रस्ट विलियम्स के नाम उल्लेखनीय हैं।

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आयोग की नियुक्ति के उद्देश्य एवं कार्यक्षेत्र

इस आयोग की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य था भारत की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा की स्थिति का अध्ययन करना और उसके पुनर्गठन के सम्बन्ध में सुझाव देना। इस उद्देश्य की दृष्टि से आयोग का कार्यक्षेत्र अति विस्तृत हो गया-

  • भारत के सभी प्रान्तों की माध्यमिक शिक्षा के प्रशासन एवं संगठन का अध्ययन करना और उनमें सुधार हेतु सुझाव देना।
  • भारत के सभी प्रान्तों की माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण स्तर का अध्ययन करना और उनमें सुधार हेतु सुझाव देना।
  • भारत के सभी प्रान्तों में माध्यमिक स्तर पर छात्र अनुशासन की समीक्षा करना और उसमें सुधार के लिए सुझाव देना।
  • भारत के सभी प्रान्तों में माध्यमिक शिक्षकों के वेतनमान और सेवाशर्तों आदि का अध्ययन करना और उनमें सुधार के लिए सुझाव देना।
  • भारत के सभी प्रान्तों के माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति का अध्ययन करना और उनमें सुधार के लिए सुझाव देना।
  • भारत के सभी प्रान्तों में माध्यमिक स्तर की परीक्षा प्रणालियों का अध्ययन करना और उनमें सुधार के लिए सुझाव देना।
  • भारत के सभी प्रान्तों में माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन करना और उन्हें दूर करने के उपाय खोजना।

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आयोग का प्रतिवेदन

आयोग ने भारत के विभिन्न प्रान्तों की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा का अध्ययन करने और उसमें सुधार के लिए सुझाव देने के लिए दो अध्ययन प्रणालियों को अपनाया-एक प्रश्नावली और दूसरी साक्षात्कार। उसने माध्यमिक शिक्षा के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित एक विस्तृत प्रश्नावली (Questionnaire) तैयार की और उसकी प्रतियों को देश के विभिन्न भागों के कुछ माध्यमिक शिक्षकों एवं प्रधानाचार्यों और कुछ उच्च शिक्षा शिक्षकों एवं शिक्षाविदों के पास भेजा। उसने प्राप्त प्रश्नावलियों के मतों और सुझावों का सांख्यिकीय विवरण Read More..

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