राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) 1964–66 | National Education Commission (Kothari Commission)

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2 min readFeb 3, 2024

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राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग)

स्वतन्त्र होते ही हमने अपने देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रयास शुरु किए। इस सन्दर्भ में भारत सरकार का पहला बड़ा कदम था ‘विश्वविद्यालय आयोग’ (राधाकृष्णन् कमीशन) की नियुक्ति। इस आयोग ने विश्वविद्यालयी शिक्षा के प्रशासन, संगठन और उसके स्तर को ऊँचा उठाने सम्बन्धी अनेक ठोस सुझाव दिए। उसके कुछ सुझावों का क्रियान्वयन भी किया गया, उससे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कुछ सुधार भी हुआ, परन्तु वह सब हाथ नहीं लगा जिसे हम प्राप्त करना चाहते थे। शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार का दूसरा बड़ा कदम था ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ (मुदालियर कमीशन) की नियुक्ति।

इस आयोग ने तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोषों को उजागर किया और उसके पुनर्गठन हेतु अनेक ठोस सुझाव दिए। कुछ प्रान्तीय सरकारों ने उसके सुझावों के अनुसार माध्यमिक शिक्षा में परिवर्तन करना भी शुरु किया, परन्तु इस सबसे भी वह सब हाथ नहीं लगा जिसे हम प्राप्त करना चाहते थे। अतः भारत सरकार ने शिक्षा के पुनर्गठन पर समग्र रूप से सोचने-समझने और देशभर के लिए समान शिक्षा नीति का निर्माण करने के उद्देश्य से 14 जुलाई, 1964 को डॉ० डी० एस० कोठारी (तत्कालीन अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) की अध्यक्षता में 17 सदस्यीय राष्ट्रीय शिक्षा आयोग’ का गठन किया। इस आयोग को इसके अध्यक्ष के नाम पर ‘कोठारी आयोग’ (Kothari Commission) भी कहते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) के उद्देश्य एवं कार्यक्षेत्र

भारत सरकार ने आयोग की नियुक्ति के उद्देश्य के सन्दर्भ में यह घोषणा की कि ‘’आयोग भारत सरकार को शिक्षा के राष्ट्रीय स्वरूप और उसके सभी स्तरों एवं पक्षों के सम्बन्ध में सामान्य सिद्धान्तों एवं नीतियों के विषय में सुझाव देगा।’’ इसी उद्देश्य को आयोग ने अपने प्रतिवेदन में इस प्रकार व्यक्त किया है- ‘’यह आयोग सरकार को शिक्षा सम्बन्धी नीतियों, शिक्षा के राष्ट्रीय प्रतिमानों एवं शिक्षा के हर क्षेत्र में विकास की सम्भावनाओं पर विचार करने और अपनी सलाह सरकार को देने के लिए Read More…

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