लार्ड मैकाले का विवरण पत्र | निस्यन्दन सिद्धान्त | एडम रिपोर्ट एवं शिक्षा नीति 1839

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7 min readAug 26, 2023

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मैकॉले का विवरण पत्र

1813 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक नया आज्ञा पत्र जारी किया था। इस आज्ञा पत्र में कम्पनी को भारतीयों की शिक्षा के सन्दर्भ में यह निर्देश दिया गया था कि प्रति वर्ष कम से कम एक लाख रुपये की धनराशि का प्रयोग साहित्य के रख-रखाव एवं विकास तथा भारतीय विद्वानों के प्रोत्साहन और भारत में कम्पनी (ब्रिटिश) शासित क्षेत्रों में रहने वालों को विज्ञान का ज्ञान कराने में किया जाए।

परन्तु इस आदेश पत्र में न तो साहित्य शब्द की व्याख्या की गई थी और न भारतीय विद्वान की इस विषय में कम्पनी में दो विचारधाराओं को जन्म दिया- एक प्राच्यवादी और दूसरी पाश्चात्यवादी। इस मसले पर ब्रिटिश पार्लियामेंट में भी दो दल हो गए- एक प्राच्यवादी और दूसरा पाश्चात्यवादी और यह विवाद 20 वर्ष बाद प्रसारित 1833 के आज्ञा पत्र में भी नहीं सुलझाया जा सका।

10 जून, 1834 को लार्ड मैकॉले गवर्नर जनरल की काउन्सिल का कानूनी सलाहकार बनकर भारत आया। मैकॉले अंग्रेजी भाषा और साहित्य का प्रकाण्ड विद्वान था। साथ ही वह एक कुशल वक्ता और लेखक था। तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक (Lord William Bentinck) ने उसे जन शिक्षा समिति (Public Instructions Commitee) का अध्यक्ष नियुक्त किया और उससे यह अपेक्षा की कि वह 1813 के आज्ञा पत्र में उल्लखित धनराशि को व्यय की मद स्पष्ट करे और साहित्य तथा भारतीय विद्वान का अर्थ स्पष्ट करे और प्राच्य पाश्चात्य विवाद का हल सुझाए।

मैकॉले ने सर्वप्रथम 1813 के आज्ञा पत्र की तत्सम्बन्धी धारा 43 का गम्भीरता से अध्ययन किया। इसके बाद उसने कम्पनी के प्राच्यवादी और पाश्चात्यवादियों के लिखित वक्तव्यों (दलीलों) का अध्ययन किया और अन्त में 2 फरवरी 1835 को अपना विवरण पत्र गवर्नर जनरल को पेश किया। इस विवरण पत्र को मैकॉले का विवरण पत्र कहते हैं। इस विवरण पत्र में मैकॉले ने सर्वप्रथम 1813 के आज्ञा पत्र की धारा 43 की व्याख्या की और उसके बाद इस सम्बन्ध में अपने ठोस सुझाव प्रस्तुत किए। यहाँ उस सबका क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत है।

1813 के आज्ञा पत्र की 43वीं धारा की व्याख्या

इस आज्ञा पत्र के तीन मुद्दे विवाद के विषय थे आवंटित धनराशि का व्यय कैसे हो, साहित्य शब्द से क्या अर्थ लिया जाए और भारतीय विद्वान की सीमा में कौन से विद्वान लिए जाएँ। मैकाले ने इन तीनों मुद्दों को स्पष्ट किया।

1. धनराशि के व्यय की व्याख्या

मैकॉले ने स्पष्ट किया कि इस धनराशि को व्यय करने के सम्बन्ध में कम्पनी पर किसी प्रकार का बन्धन नहीं है, वह इसे जिस मद पर जिस तरह व्यय करना चाहे कर सकती है।

2. साहित्य शब्द की व्याख्या

मैकॉले ने स्पष्ट किया कि साहित्य शब्द से तात्पर्य केवल भारतीय साहित्य संस्कृत, अरबी आदि के साहित्य से ही नहीं है अपितु इसकी सीमा में पाश्चात्य साहित्य (अंग्रेजी — साहित्य) भी आता है।

3. भारतीय विद्वान की व्याख्या

भारतीय विद्वानों की सीमा के सम्बन्ध में मैकाले ने कहा कि इसमें केवल भारतीय भाषाओं (संस्कृत और अरबी) के विद्वान ही नहीं, अपितु अंग्रेजी साहित्य के विद्वान भी आते हैं, लॉक के दर्शन और मिल्टन की कविताओं के जानकार भी आते हैं।

लार्ड मैकॉले के सुझाव

1813 के आज्ञा पत्र की तत्सम्बन्धी धारा 43 की व्याख्या करने के बाद लार्ड मैकॉले ने भारतीयों की शिक्षा के स्वरूप के सम्बन्ध में अपने सुझाव प्रस्तुत किए। मैकॉले के उन सुझावों को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-

1. प्राच्य साहित्य एवं ज्ञान की शिक्षा निरर्थक

भारतीय साहित्य (संस्कृत और अरबी) के विषय में मैकॉले ने लिखा कि भारतीय धर्म ग्रन्थ अन्धविश्वासों और मूर्खतापूर्ण तथ्यों से भरे हैं। इसके इतिहास में 30 फीट लम्बे राजाओं का वर्णन है और इसके भूगोल में शीरे और मक्खन के समुद्रों का वर्णन है। इसका चिकित्साशास्त्र ऐसा है जिस पर अंग्रेज पशु चिकित्सकों को भी शर्म आएगी और ज्योतिषशास्त्र ऐसा है जिस पर अंग्रेज स्कूली लड़कियाँ हँसेंगी। अतः इसका पढ़ना-पढ़ाना निरर्थक है। उसने यह भी सुझाव दिया कि संस्कृत और अरबी स्कूल तथा कॉलिजों पर सरकारी धन व्यय करना व्यर्थ है, उन्हें तुरन्त बन्द कर दिया जाए। साथ ही उसने यह भी सुझाव दिया कि प्राच्य साहित्य के मुद्रण और प्रकाशन पर सरकारी धन को व्यय नहीं किया जाए।

2. पाश्चात्य साहित्य एवं ज्ञान की शिक्षा महत्त्वपूर्ण

मैकॉले अंग्रेजी साहित्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ साहित्य मानता था। संस्कृत और अरबी साहित्य को तो वह उसके आगे नगण्य मानता था। उसने अपने विवरण पत्र में लिखा कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी की पुस्तकें भारत और अरब के सम्पूर्ण है साहित्य के बराबर है (A single shelf of a good European library was worth the whole native- literature of India and Arabia) उसने सुझाव दिया कि भारतीयों को अंग्रेजी भाषा और साहित्य का ज्ञान अनिवार्य रूप से कराया जाए।

3. अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना आवश्यक

प्राच्यवादी भारतीय भाषाओं (संस्कृत और अरबी आदि) को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते थे और पाश्चात्यवादी अंग्रेजी को मैकॉले ने अपने विवरण पत्र में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव दिया। अपने सुझाव के पक्ष में उसने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए-

  • भारत में प्रचलित देशी भाषाएँ अविकसित और गँवारू हैं, इनका शब्दकोश बहुत सीमित है, इनके माध्यम से भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से परिचित नहीं कराया जा सकता।
  • अंग्रेजी भाषा में संसार का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान भण्डार है, जो अंग्रेजी भाषा को जानता है वह उस विशाल ज्ञान भण्डार को जान सकता है जिसे विश्व की सबसे बुद्धिमान जातियों ने रचा है, भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का ज्ञान अंग्रेजी के माध्यम से ही कराया जा सकता है।
  • संस्कृत और अरबी भारत की सर्वसाधारण की भाषा नहीं हैं और इन्हें सीखने में भारतीयों की रुचि भी नहीं है। वैसे भी इनकी अपेक्षा अंग्रेजी भाषा सीखना सरल है इसलिए इसे ही शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।
  • अंग्रेजी शासकों की भाषा है, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की भाषा है और अब भारत के उच्च वर्ग के लोगों की भाषा है अतः इसे ही शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।
  • अब प्रबुद्ध भारतीय राजा राममोहन राय आदि भी यह स्वीकार कर रहे हैं कि भारत के विकास और उत्थान के लिए अंग्रेजी सीखना आवश्यक है, पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान मोखना आवश्यक है। अतः अंग्रेजी को ही शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए।
  • मैकाले ने भारतीय कानून की शिक्षा के लिए अरबी और फारसी को माध्यम बनाए रखने का भी विरोध किया और सुझाव दिया कि भारतीय कानून का अंग्रेजी में अनुवाद किया जाए और उसकी शिक्षा भी अग्रेजी के माध्यम से दी जाए।

4. उच्च वर्ग के लिए उच्च शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था

मैकॉले ने अपने विवरण पत्र में यह भी स्पष्ट किया कि सरकार के पास इतना धन नहीं है कि वह भारत में जन शिक्षा की व्यवस्था कर सके। उसने सुझाव दिया कि सरकार केवल उच्च वर्ग के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था करे। अपने इस सुझाव के पक्ष में उसने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए-

  • इससे भारत में एक ऐसे वर्ग का निर्माण होगा, जो शासक (अंग्रेज) और शासित (भारत की आम जनता) के बीच सन्देशवाहक का कार्य करेगा।
  • इससे भारत में दो वर्गों का निर्माण होगा, उच्च शिक्षा प्राप्त उच्च वर्ग और उच्च शिक्षा से वचित निम्न वर्ग।
  • इससे उच्च वर्ग में पड़े पाश्चात्य संस्कार धीरे-धीरे उनके सम्पर्क में आने वाले निम्न वर्ग के लोगों पर पड़ेंगे
  • इससे कम्पनी को कनिष्ठ पदों पर कार्य करने वाले भारतीय सरलता से मिल सकेंगे।
  • और यह लाभ भी होगा कि उच्च वर्ग के शिक्षित लोगों के द्वारा शिक्षा निम्न वर्ग के लोगों तक स्वयं पहुँच जाएगी।

5. शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक तटस्थता की नीति आवश्यक

यूँ मैकॉले भारत में पाश्चात्य ईसाई धर्म, पाश्चात्य यूरोपियन संस्कृति और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का प्रसार कर भारतीयों को पाश्चात्य जामा पहनाने का प्रबल समर्थक था, परन्तु वह यह सब कार्य बहुत चतुरता से करना चाहता था। वह जान रहा था कि यदि इस सबके लिए सीधे और जबरन प्रयास किया जाए तो उससे एक ओर भारतीय अपने धर्मों की रक्षा और उनके प्रसार के लिए क्रियाशील हो जाएँगे और दूसरी ओर वे अंग्रेजी शासन का विरोध करने लगेंगे, इसलिए उसने विद्यालयों में किसी भी धर्म को शिक्षा अनिवार्य रूप से न दिए जाने का सुझाव दिया।

यह भी पढ़ें-

गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक की स्वीकृति

2 फरवरी, 1835 को गवर्नर जनरल बैटिंक को मैकॉले का विवरण पत्र प्राप्त हुआ। इस पर उसने गम्भीरता से विचार किया और 7 मार्च, 1835 को उसकी मुख्य सिफारिशों को स्वीकार करते हुए ब्रिटिश सरकार को नई शिक्षा नीति की घोषणा की। इस नीति की मुख्य घोषणाएँ इस प्रकार थीं-

  • शिक्षा के लिए निर्धारित धनराशि का सर्वोत्कृष्ट प्रयोग केवल अंग्रेजी शिक्षा के लिए ही किया जा सकेगा। (All government fund appropriated for the purposes of education would be best employed on English Education alone- Government Procumation of 1835)।
  • संस्कृत, अरबी और फारसी की शिक्षण संस्थाओं को बन्द नहीं किया जाएगा। उनके शिक्षकों के वेतन और छात्रों की छात्रवृत्तियों के लिए आर्थिक अनुदान यथावत् जारी रहेगा।
  • भविष्य में प्राच्य साहित्य के मुद्रण और प्रकाशन पर कोई व्यय नहीं किया जाएगा।
  • मद 3 से बचने वाली धनराशि को अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी साहित्य और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को शिक्षा पर व्यय किया जाएगा।

लार्ड मैकॉले के विवरण पत्र और विलियम बैटिंक की शिक्षा नीति के परिणाम

लार्ड मैकाले के विवरण पत्र के आधार पर घोषित विलियम बैटिंक की शिक्षा नीति के परिणामों को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-

  • भारत में अंग्रेजी माध्यम की अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत ।
  • विद्यालयों पाठ्यचर्या में प्राच्य भाषा और साहित्यों और ज्ञान-विज्ञान के स्थान पर पाश्चात्य भाषा अंग्रेजी और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को स्थान ।

मैकॉले और उसके विवरण पत्र का मूल्यांकन अथवा गुण-दोष विवेचन

किसी भी वस्तु, विचार अथवा क्रिया का मूल्यांकन किन्हीं निश्चित मानदण्डों के आधार पर किया जाता है। मैकॉले और उसके विवरण पत्र का मूल्यांकन तीन आधारों पर किया जा सकता है और किया भी जाना चाहिए-पहला यह कि उसका इरादा क्या था, दूसरा यह कि उसने जो सुझाव दिए थे वे भारतीयों के कितने हित में थे और तीसरा यह कि उनके परिणाम भारतीयों के कितने हित में रहे।Read more…

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