वर्धा शिक्षा योजना क्या है, खैर समिति और आचार्य नरेन्द्र देव समिति प्रथम- Full Information

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4 min readJan 5, 2024

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वर्धा शिक्षा योजना क्या है

अंग्रेजों की द्वैध शासन प्रणाली से भारतीय सन्तुष्ट नहीं थे, वे उसकी समाप्ति की माँग कर रहे थे। समय की नब्ज पहचानते हुए ब्रिटिश संसद ने 1935 में ‘भारत सरकार अधिनियम 1935’ (Government of India Act, 1935) पास किया। यह अधिनियम 1937 में लागू किया गया। इस अधिनियम से भारत में द्वैध शासन की समाप्ति हुई और प्रान्तों में स्वशासन स्थापित हुआ। उस समय भारत 11 प्रान्तों में विभाजित था। इन 11 प्रान्तों में से 7 प्रान्तों में कांग्रेस मन्त्री मण्डल बने और एक नए युग की शुरुआत हुई।

उस समय राष्ट्र का नेतृत्व गाँधी जी के हाथों में था। उन्होंने 11 अगस्त, 1937 के अखबार में प्रान्तीय सरकारों को 7 से 14 वर्ष के बच्चों की शिक्षा का भार अपने ऊपर लेने का सुझाव दिया। उसके बाद उन्होंने 2 अक्टूबर, 1937 के हरिजन में लिखा कि प्राथमिक शिक्षा 7 वर्ष या इससे अधिक समय की हो और इसमें अंग्रेजी को छोड़कर वे सब विषय पढ़ाए जाएँ जिन्हें मैट्रीकुलेशन (हाई स्कूल) परीक्षा के लिए पढ़ाया जाता है। साथ ही किसी हस्तशिल्प अथवा उद्योग को अनिवार्य रूप से पढ़ाया सिखाया जाए। गाँधी जी के इन विचारों से देश में एक नई शैक्षिक क्रान्ति का शुभारम्भ हुआ।

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन, वर्धा

22–23 अक्टूबर, 1937 को वर्धा में ‘मारवाड़ी शिक्षा मण्डल’ की रजत जयन्ती मनाई जाने वाली थी। श्री मन्नारायण अग्रवाल, इसके आयोजक थे। गाँधी जी ने उन्हें इस अवसर पर एक शिक्षा सम्मेलन का आयोजन करने का सुझाव दिया। अग्रवाल साहब ने इस अवसर पर भारत के सातों कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों के शिक्षा मन्त्रियों और देश के चोटी के शिक्षाशास्त्रियों, विचारकों और राष्ट्रीय नेताओं को आमन्त्रित किया और ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन’ का आयोजन किया। इसे ‘वर्धा शिक्षा सम्मेलन’ भी कहा जाता है। इस सम्मेलन का सभापतित्व स्वयं गाधी जी ने किया था।

सभापति पद से बोलते हुए गाँधी जी ने अपने शैक्षिक विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने तत्कालीन शिक्षा को अपव्ययपूर्ण और हानिप्रद बताया। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में 7 मूलभूत बातें कहीं। पहली यह कि देश में 7 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था हो। दूसरी यह कि यह शिक्षा सभी के लिए समान हो। तीसरी यह कि यह शिक्षा देश को ग्रामीण जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप हो। चौथी यह कि इसमें भाषा, गणित आदि की शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को सफाई, स्वास्थ्य रक्षा, भोजन के नियम और माता-पिता के कार्यों में हाथ बंटाने की शिक्षा दी जाए।

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पाँचवी यह कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो। छठी यह कि इसमें कृषि और भारतीय हस्त कौशलों की शिक्षा दी जाए। और सातवीं तथा अन्तिम यह कि समस्त शिक्षा हस्तकौशलों के माध्यम से दी जाए और शिक्षा को स्वावलम्बी बनाया जाए। उन्होंने इस बात पर बहुत बल दिया कि स्कूलों में होने वाले उत्पादन से स्कूलों का व्यय निकलना चाहिए और इस शिक्षा को प्राप्त करने के बाद बच्चे अपनी जीविका कमाने योग्य होने चाहिए।

अतः गाँधी जी के इन विचारों पर खुलकर चर्चा हुई और अन्त में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित हुए-

(1) राष्ट्र के 7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।

(2) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।

(3) शिक्षा किसी हस्तकौशल के माध्यम से दी जाए।

(4) इस स्तर का पाठ्यक्रम बच्चों की अपनी आवश्यकताओं के आधार पर बनाया जाए।

(5) यह शिक्षा स्वावलम्बी हो, स्कूलों में होने वाले उत्पादन से शिक्षकों के वेतन का भुगतान किया जा सके।

डॉ० जाकिर हुसैन समिति, 1937

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन, वर्धा में प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा योजना को अन्तिम रूप देने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इसे ‘जाकिर हुसैन समिति’ कहा जाता है। समिति ने अपनी रिपोर्ट दो भागों में प्रस्तुत की। प्रथम रिपोर्ट दिसम्बर, 1937 में प्रस्तुत की। इसमें वर्धा शिक्षा योजना के सिद्धान्त, पाठ्यक्रम, प्रशासन और निरीक्षण कार्य पर प्रकाश डाला गया था। दूसरी रिपोर्ट अप्रैल, 1938 में प्रस्तुत की। इसमें आधारभूत हस्तकौशलों से पाठ्यक्रम के अन्य विषयों का सहसम्बन्ध स्थापित करने पर प्रकाश डाला गया था। समिति ने इस योजना को बुनियादी तालीम (Basic Education) का नाम दिया।

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शिमला सम्मेलन, 1901, भारतीय विश्वविद्यालय आयोग, 1902 और कर्जन शिक्षा नीति, 1904

हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन, 1938

फरवरी, 1938 में हरिपुरा में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में डॉ० जाकिर हुसैन समिति की रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया। कांग्रेस ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया और साथ ही इसे सभी कांग्रेस शासित प्रदेशों में लागू करने का निर्णय लिया। आज इसे हिन्दी में वर्धा शिक्षा योजना, बुनियादी तालीम, बुनियादी शिक्षा और बेसिक शिक्षा कई नामों से जाना जाता है, परन्तु अंग्रेजी में बेसिक Read more…..

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