संविधान सभा की आलोचनाएं भारतीय संविधान के निर्माण के समय महत्वपूर्ण थीं। यह सभा 1946 से 1949 तक भारतीय संविधान को तैयार करने के लिए बनाई गई थी। इसमें विभिन्न विचारों और दलों के सदस्य शामिल थे, जिन्होंने भारतीय समाज के संविधान में विभिन्न मुद्दों को समाधान किया।
संविधान सभा की कुछ मुख्य आलोचनाएं निम्नलिखित हैं:
प्रारंभिक आलोचनाएं: संविधान सभा की प्रारंभिक आलोचनाएं विभिन्न विषयों पर थीं, जैसे कि भाषा, धर्म, सामाजिक और आर्थिक न्याय, राज्य-केन्द्र संबंध, इत्यादि।
विधाननीति: संविधान सभा में विधाननीति पर भी बहस हुई, जैसे कि संविधान की नीतियों के प्राथमिकताएं, न्यायपालिका की स्थापना, गणराज्य के सिद्धांत, आदि।
राज्य-केन्द्र संबंध: राज्य-केन्द्र संबंधों पर भी विवाद था। कुछ सदस्य राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने की मांग करते थे, जबकि अन्य इसे संविधान के केंद्रीयकृत स्वरूप के साथ बनाना चाहते थे।
समाजिक न्याय: समाजिक न्याय के मुद्दे पर भी सभा में चर्चा हुई। इसमें आर्थिक और सामाजिक असमानता के खिलाफ कठोर उपायों की मांग भी थी।
नागरिक स्वतंत्रता: नागरिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों के विषय में भी विवाद था, जिसमें विभिन्न दलों ने नागरिकों को कितनी और कैसी स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए इस पर बहस की।
धर्म और सम्प्रदाय: धर्म और सम्प्रदाय से संबंधित मुद्दे भी महत्वपूर्ण थे, जैसे कि धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक आजीवन्तता, और धार्मिक स्वतंत्रता।
संविधान सभा की इन आलोचनाओं का परिणामस्वरूप एक सम्मति संविधान बनाया गया, जो 26 नवंबर 1949 को संघ की एकीकरण के बाद सम्पूर्णता से प्रमाणित किया गया। यह संविधान भारतीय संविधान के रूप में अपनी पहचान बन गया और भारतीय राजनीति और समाज की आधारशिला बना।