सुमित्रानन्दन पन्त : सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय

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3 min readSep 8, 2023

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सुमित्रानन्दन पन्त :

स्मरणीय तथ्य

जन्म- सन् 1900 ई०, कौसानी, जिला अल्मोड़ा।

मृत्यु- 28 दिसम्बर, 19771

पिता- श्री गंगादत्त पन्त ।

रचनाएँ- ‘वीणा’, ‘ग्रन्थि’, ‘पल्लव’, ‘गुन्जन’, ‘युगान्त’, ‘युगवाणी’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘उत्तरा’ आदि।

काव्यगत विशेषताएँ :

वर्ण्य- विषय-छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रकृति-प्रेम, देश-प्रेम ।

भाषा- संस्कृत बहुल, कोमल-कान्त पदावली, खड़ीबोली ।

शैली- गीतात्मक, मुक्तक शैली।

अलंकार- श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, ध्वनि-चित्रण आदि ।

छन्द- तुकान्त, अतुकान्त, स्वच्छन्द-छन्द, मुक्तक ।

जीवन-परिचय

सुमित्रानन्दन पन्त : प्रकृति के पुजारी कवि पन्त का जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में सन् 1900 ई0 में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० गंगादत्त पन्त था। प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम में पूरी करने के पश्चात् इन्होंने अल्मोड़ा, काशी और प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। पन्त जी बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। इनकी रचनाओं पर स्वामी रामतीर्थ, विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अरविन्द आदि महापुरुषों के जीवन-दर्शन की गहरी छाप पड़ी है। बचपन से ही प्रकृति के सुरम्य अंचल में रहने के कारण इनमें प्रकृति के प्रति अटूट आकर्षण है। पन्त जी अत्यन्त ही सुन्दर भावुक और सरल हृदय के व्यक्ति थे। इन्होंने 1920 ई0 के असहयोग आन्दोलन में भी भाग लिया था। साहित्य अकादमी ने इन्हें पुरस्कृत किया है। भारत सरकार ने इनको पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया है। इनकी ‘चिदम्बरा’ नामक कृति को एक लाख रुपये का भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। इनकी मृत्यु 28 दिसम्बर, 1977 को हुई।

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सुमित्रानन्दन पन्त की रचनाएँ

पन्त जी ने गद्य और पद्य दोनों ही प्रकार की रचनाएँ की हैं कविता के अतिरिक्त इन्होंने कहानी, निबन्ध, नाटक आदि भी लिखे हैं।

इनके काव्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

वीणा, ग्रन्थि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा, युगपथ, अणिमा, खादी के फूल, उच्छ्वास, मधुज्ज्वल, चिदम्बरा, लोकायतन, रश्मिबन्ध आदि ज्योत्स्ना, रजतशिखर, शिल्पी, उत्तरशती इनके नाटक हैं।

काव्यगत विशेषताएँ

(क) भाव पक्ष

पन्त जी के काव्य जीवन यात्रा के प्रमुख तीन सोपान है -

(i) छायावादी काव्य रचना का युग,
(ii) प्रगतिवादी काव्य रचना का युग तथा
(iii) अन्तश्चेतना और आध्यात्मिक कविता का युग।

  • ये मूलतः प्रेम सौन्दर्य और जीवन की कोमलतम भावनाओं के सुकुमार कवि हैं।
  • इनके काव्य में प्रकृति के प्रायः सभी रूपों का चित्रण हुआ है।
  • प्रकृति ने ही वास्तव में पन्त जी को छायावादी और रहस्यवादी बनाया है। सचमुच छायावाद अपने पूरे सौन्दर्य और प्रकृति के साथ पन्त जी की कविताओं में ही प्रकट हुआ है। इसलिए पन्त जी को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा गया है।
  • इनके काव्य में मानवता के प्रति सहज आस्था है। ये एकमुखी सुन्दरी के प्रति आशावान हैं। विश्व बन्धुत्व और भ्रातृत्व के प्रति उनका यह आशावादी स्वर उनके काव्य को अति उदात्त बना देता है।
  • इनके काव्य पर अपने युग का पूरा प्रभाव पड़ा है। छायावादी रचनाओं में जहाँ ये उन्मुक्त आकाश में उड़ान भरते हैं वहीं अपने प्रगतिवादी रचनाओं में धरती पर आकर साम्राज्यवाद पूंजीवाद, शोषक वर्ग के प्रति विरोध के स्वर भी मुखर करते हैं।
  • गाँधी जी की अहिंसा और नारी उत्थान भक्ति भी ये विशेष सचेष्ट हैं।
  • इनके नारी चित्रण में आध्यात्मिक सत्ता का बोध होता है।
  • इनके प्राकृतिक रहस्यवाद में आध्यात्मिक विराट सत्ता का स्पष्ट वर्णन होता है।
  • सामाजिक रूढ़ियों के घोर विरोधी और विसंगतियों को दूर करने के पक्षपाती है।
  • आध्यात्मिक प्रेम के चित्रण के साथ-साथ इनके लौकिक प्रेम की अभिव्यंजना भी बड़ी सुन्दर हुई है।

(ख) कला पक्ष

भाषा-शैली- पन्त जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, इसके अतिरिक्त ब्रज, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग कहीं-कहीं हुआ है। इनकी भाषा संगीतमयी कोमल पदावलियों से युक्त है। इसमें मोहक नाद सौन्दर्य है। भाषा में माधुर्य गुणों की प्रचुरता है। कहीं- कहीं ओजगुण भी दिखलाई पड़ता है। भाषा कहीं-कहीं व्याकरण के नियमों का उल्लंघन भी करती है फिर भी उसमें किसी प्रकार की शिथिलता का आरोप नहीं किया जा सकता। पन्त जी की शैली बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत कवियों से प्रभावित गीतात्मक मुक्तक शैली जिसमें सरलता, संगीतात्मकता और अभिव्यंजना शक्ति की प्रधानता है। इनके गीति काव्यों में भावों की प्रधानता है।Red more..

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